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21 Jul 2021 · 1 min read

मउगी ओकर (हास्य कविता)

मउगी ओकर (हास्य कविता)
■■■■■■■■■■■■■
ऊ तऽ हउवे बहुते भोला
मउगी ओकर धधकत शोला

छुवते ओकर जीव जरेला
प्रेम करे तऽ बजर परेला
जरे आँख बीखी के मारे
खिसिआले तऽ दुनिया हारे
माँगे बीखो सौ सौ तोला-
मउगी ओकर धधकत शोला

बोलेले धमकउवा बोली
जइसे बोले बम आ गोली
गुरनाले आ परे काटे
हड़िया पतुकी रोज उलाटे
बन जाले आगी के गोला-
मउगी ओकर धधकत शोला

कान बंद आ मुँहवा जारी
हवे गाँव के छटुआ नारी
भोपू बन के देले हरदम
एके साँसे एतना गारी
मार-पीट अब रोजो होला-
मउगी ओकर धधकत शोला

कहबऽ तऽ बहुते ऊ चींड़ी
पीयेले गाँजा आ बींड़ी
गुटखा, सुर्ती खाले रोजे
कहियो कहियो दारू खोजे
योइमे डाले पेप्सी, कोला-
मउगी ओकर धधकत शोला

मुर्गा-मछरी जम के चापे
एक डेग में छौ फुट नापे
आँख तरेरे कूँचे माहुर
रोज सुनावे नीमन बाउर
चिधरे अइसन काँपे टोला-
मउगी ओकर धधकत शोला

खाना दे के ओरहन देले
मुँहझउँसा ऊ रोज कहेले
कहेले पेरले बा घरी
डाटे तऽ नाचेले फरी
मरदा तऽ फेकेला चोला-
मउगी ओकर धधकत शोला

– आकाश महेशपुरी

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